स्त्री और पुरुष में कुछ तो अलग है, और यही अंतर कितना सुंदर है। यह अंतर भेदभाव का संकेत नहीं है, हर किसी की अलग ताकत है, तभी तो जीवन सुखद है। पुरुष साहसी है, तो स्त्री भी धैर्यवान, वह उसके पीछे खड़ी रहती है, ताकि न लड़खड़ाए उसका सम्मान। वह भी थकती है, टूटती है, पर कभी हार नहीं मानती, घर, करियर, ज़िम्मेदारियों में, वह कभी पीछे नहीं रहती। प्रकृति ने भले ही अलग बनाया हो, पर अवसर समान चाहिए, रास्ते अलग हो सकते हैं, पर मंज़िल की पहचान चाहिए। वह सहारा देता है, तो स्त्री भी उसकी छाया बनती है, जब दोनों साथ चलते हैं, तभी राह आसान बनती है।